You are currently viewing आमने-सामने (Tête-à-Tête) पूनम वर्मा के साथ
Courtesy @ Poonam Varma

आमने-सामने (Tête-à-Tête) पूनम वर्मा के साथ

Courtesy @ Poonam Varma

पूनम वर्मा एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले की रहने वाली हैं। वे सेव द चिल्ड्रन संगठन के साथ जुड़ी हुई हैं।

शिक्षा

एक और परिवार था जिसमें एक विधवा महिला थी और वो अपनी पांच लड़कियां और एक लड़के के साथ रह रही थी। महिला का पति और ससुराल वाले गुज़र गए थे। वो महिला मंगलसूत्र बना कर अपने जीवन का निर्वाह कर रही थी। बाहर की दुनिया के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी।

उसने सोचा निजी विद्यालय की पढ़ाई महंगी होगी, सब लोग गुज़र चुके हैं और सारी ज़िम्मेदारियाँ मेरे सर पर हैं, मैं शुल्क कैसे भरूंगी। इसलिए सरकारी विद्यालय में दाखिला कराने के लिए वो स्थानांतरण प्रमाणपत्र (Transfer Certificate, TC) लेने गयी तो प्रधानाचार्य ने TC के लिए २५०००/- रुपए जमा करने को कहा।

 

Courtesy @ Poonam Varma

उनका केस समझ कर मैंने एक वीडियो बनाया। मैं अपने समुदाय की बात करूँ तो लिखित कार्यवाई के बजाये जब तक अधिकारियों को परिस्थिति दिखाई जाये, तब तक काम नहीं होता।

वीडियो बनाने के बाद मैंने एक अर्जी लिखी और उस महिला के साथ मिलकर हमने जिला कलेक्टर से मुलाकात की। करवाई के बाद २५०००/- में से २००००/- माफ़ हो गए और ५०००/- हमने जमा करवा दिए और TC ले ली। फिर राइट टू एजुकेशन के तहत उस महिला के दो बच्चों का विद्यालय में प्रवेश करवा दिया। इसके बाद मैंने उस महिला को पालनहार स्कीम से भी जुड़ा दिया जो बच्चों के पालन-पोषण को देखती है और १०००/- हर बच्चे के लिए देती है १८ वर्ष होने तक।

तीसरा मामला है आरामपुरा का जो की दलित लोगों का गाँव है और उस गाँव में विद्यालय नहीं है। १००० लोगों की जन-संख्य पर एक आंगनवाड़ी होती है और २००-२५० बच्चों के लिए एक प्राथमिक विद्यालय होता है।

Courtesy @ Poonam Varma

एक विद्यालय बनवाने के लिए हमने २०१८ में गाँव वालों के साथ मिलकर अफसरों से बातचीत की लेकिन कोई करवाई नहीं हुई। सरपंच ने सहयोग नहीं किया क्यूंकि मसला दलित समाज का था। उन्होंने कहा की लिख कर दे दो, हमने लिख कर दे दिया। लेकिन उस पर कुछ हुआ नहीं। ये काम ना हो पाने का मुझे आज भी दुःख है।

कहा जाता है की शिक्षा में कई बदलाव हो चुके हैं लेकिन आज भी हम सरकारी स्कूलों की हालत देखें तो दलित समुदाय के बच्चों के लिए कहीं एक पेड़ के नीचे स्कूल चल रहा है जहाँ लड़कियों को शौच जाने की भी सुविधा नहीं है।

विद्यालयों में शौचालय तो बना है लेकिन वहां पानी नहीं है, साबुन नहीं है, दरवाज़े नहीं हैं। लड़कियाँ वहां आज भी खुले में ही शौच करती हैं।

इस बारे में मैं कार्रवाई करने वाली हूँ जिला अधिकारी और शिक्षा अधिकारी से मिलकर। अब लॉकडाउन के बाद स्कूल फिर से खुल रहे हैं तो मैं चाहती हूँ की या तो विद्यालय भवन की मरम्मत हो या तो नए हॉल बनाये जाएँ सरकार की तरफ से।

जो बजट है शिक्षा का वो इस्तेमाल होना चाहिए। जब बैठने की जगह भी नहीं है तो बच्चे पढ़ेंगे कहाँ। जहाँ शौचालय और पानी की सुविधा नहीं है, तो बच्चे स्कूल आना क्यों पसंद करेंगे।

 आवास की समस्या

२०१८ में एक वाल्मीकि समाज का परिवार था और वो काफी समय से मशक्कत कर रहा था इंदिरा आवास के लिए जो PMYK की योजना है।

उस परिवार ने सरपंचों के पास भी अपील लगायी लेकिन कोई करवाई नहीं हो पा रही थी। मैं उनके साथ मिली और जब मैंने उनकी स्थिति वास्तव में बहुत दयनीय थी।

घर के आगे पानी भरा था, दीवारें टूटी हुई थी, कहीं बैठने की जगह नहीं थी।

उस परिवार में ५-६ बच्चे और एक बूढ़े पिता थे। मैंने उनका एक वीडियो बनाया और उस वीडियो के माधयम से सरपंच के साथ मुलाकात की और उसके बाद गाँव के कैंपेन में (जहाँ हर तरह के कागज़ात और प्रमाण पत्र बनते हैं), मैंने उनके कागजात बनवाए और उस परिवार को मैंने इंदिरा आवास दिलवाया।

Courtesy @ Poonam Varma

निरक्षरता

एक महिला थी जिन्हें ये नहीं पता था की बिजली लगाने के लिए फाइल भरनी होती है। किसी ने उन्हें सलाह नहीं दी। किसी ने कहा की सब ने लाइट लगा रखी है तार डालकर, तुम भी लगा लो। गाँव में अक्सर ऐसे करते हैं पर ये गैरकानूनी होता है। किसी ने उस महिला का भी ऐसे कनेक्शन लगवा दिया ये बोलकर की कहाँ जाओगी तुम कनेक्शन के लिए, न तुम्हारे पास पैसे हैं।

Courtesy @ Poonam Varma

फिर इस साल अप्रैल में जब विद्युत् विभाग से टीम आयी गाँव में तो उस महिला का बिजली का बिल २२८६०/- बना दिया। फिर वो महिला हमारे पास आयी और रोने लग गयी की दीदी मुझे तो कुछ पता भी नहीं था इस बारे में, गाँव वालों ने ही लगा कर दिया मुझे, मैं तो चढ़ भी नहीं सकती छत पर।

अफसरों ने कहा है की आप या तो पैसे भरो या जेल जायो। 

फिर मैं एक एडवोकेट से मिली, एक एप्लीकेशन लिखी, बिजली विभाग में गयी और वहां पर काफी मशक्कत करने के बाद, EC से मिले जिन्होंने उस महिला की परिस्थिति को समझा। उन्होंने बहुत सहनशीलता से पूरी बात सुनी और पूरी स्थिति को जानने के बाद उन्होंने ८४६०/- का वीसीआर हमारे लिए तय किया जो हमने वहां भर दिया।  फिर हमने उस महिला के बिजली कनेक्शन के लिए फाइल तैयार की जो अभी प्रोसेस हो रही है।

Courtesy @ Poonam Varma

सेव चिल्ड्रन

एक बार मैं चाइल्ड हेल्पलाइन में काम कर रही थी जहाँ हम लोगों और बच्चों को POCSO एक्ट की जानकारी देते थे और उनके अधिकारों के बारे में और बाल-विवाह के दुष्परिणामों के बारे में बताते थे। हम ओपन हाउस सत्र और आउटरीच भी करते थे। वहां बाल-विवाह का एक मामला आया था।

एक १६ साल की लड़की का बालविवाह हो रहा था और उस लड़की ने इसके खिलाफ आवाज़ उठायी।

हमने DM, SDM को भी बोला लेकिन हमें धमकी मिली की आप बोलोगे तो आपको भी जेल करवा सकते हैं। लड़की की माँ बोलीं की आप कौन होती हैं मेरी लड़की के लिए फैसला लेने वालीं। मैं बच्ची की शादी करूँ, कुछ भी करूँ, ये मेरा हक़ है, आपका हक़ नहीं है, आपने जानकारी दे दी, ठीक है, लेकिन मैं शादी करवाना चाहती हूँ।

Courtesy @ Poonam Varma

 

राजस्थान में ये प्रथा है की बड़े के साथ छोटे की भी शादी कर देते हैं। जैसे एक लड़की १८ साल की है और एक १६-१७ साल की है तो दहेज़ और आर्थिक तंगी की वजह से दोनों की शादी एक बार में ही कर देते हैं। ये छुप-छुप के होता है, प्रशासन को भी पता होता है लेकिन पैसे पहुंचा दिए जाते हैं और जेबें गरम हो जाती हैं। इसलिए हम उस लड़की की मदद नहीं कर पाए।

एक दूसरे मामले में, एक १६ साल की लड़की का रेप हो गया था और जो मुजरिम थे वो लड़की को उसके घर के आगे फ़ेंक गए थे। उस लड़की की माँ ने उसे नेहला दिया, उसके कपड़े धो दिए, जो उसे नहीं करना चाहिए था।

जब लड़की की चिकित्सीय परीक्षा हुई, तो सारे सबूत मिट चुके थे और हम उस लड़की को न्याय नहीं दिला पाए। हमने काफी मशक्कत की, मीडिया में इंटरव्यू करवाए, SP से मिलवाया, तब भी हम ये साबित नहीं कर पाए की लड़की का रेप हुआ है। लड़की ने एक नहीं, दो नहीं, तीन बार मेडिकल टेस्ट कराया लेकिन हमें केस में सफलता नहीं मिली। वो लकड़ी कह रही थी की अब मेरे साथ कोई भी शादी नहीं करेगा।

 

Courtesy @ Poonam Varma

चुनौतियां

मुख्य चुनौतियां ये रहती हैं की कुछ अफसर जाति का भेदभाव करते हैं। कुछ अपनी राजनीतिक शक्ति का भी गैर-इस्तेमल करते हैं। कभी-कभी हम समुदाय की मदद करने जाते हैं तो वो कहते हैं की हाँ हम आपके साथ हैं लेकिन जब हम ऑफिसर्स के सामने जाते हैं तो वो वहां नहीं बोलना चाहते। ये एक बड़ी चुनौती रहता है की लोग हमारा साथ नहीं देते तो निराशा हाथ आती है।

दूसरी बात, हर माँ-बाप को ये सोचना चाहिए की उनकी बेटी २१ साल की उम्र के बाद ही शादी करे (जो की सरकार द्वारा तय की गयी उम्र है) और अपनी लड़कियों को ज़िन्दगी में काम आने वाली स्किल्स सिखानी चाहियें। क्यूंकि अगर लड़कियों के पास हुनर है, तो वो अपनी आजीविका चला सकती हैं।

चाहे बेटा हो, बेटी हो, दोनों को अच्छी शिक्षा दें, अच्छा स्वस्थ्य दें, अच्छी परवरिश दें।

नोट: यह लेख पूनम वर्मा और प्रीति नांगल के बीच साक्षात्कार पर आधारित है और स्पष्टता के लिए संपादित किया गया है। यह लेख Tête-à-Tête श्रृंखला का हिस्सा है, जो NCWL के जमीनी कार्यकर्ताओं के जीवन, चुनौतियों और उपलब्धियों को सूचीबद्ध करता है। इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां जाएं शेष श्रृंखला यहां और हमारे सोशल मीडिया हैंडल (फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर) पर देखी जा सकती है।