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Courtesy: Prabha Yadav

आमने-सामने (Tête-à-Tête) प्रभा यादव के साथ

प्रभा यादव सतारा जिले में रहती हैं और उन्होंने सामाजिक कार्य में परास्नातक किया है। 2006 से वे डॉ आंबेडकर शेती विकास व संशोधन संस्था से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने ‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा’ अभियान के तहत लगभग 10,000 महिलाओं को चेंजमेकर के तौर पर ट्रैन किया है।

Courtesy: Prabha Yadav

स्थानीय रोजगार और वतन भूमि

जब सांगला ब्लॉक में, जो सोलापुर जिले में आता है, में सूखा पडता है, तो उसमे छोटे जानवर जैसे बकरी और मेंढक, उनके लिए इस सूखी जगह में चारा और पानी की व्यव्स्था का अभाव रहता है। लगभग 9 महिने चारा और पानी के अभाव के कारण, छोटे किसान, मजदूर आजीविका के लिये बकरी कम दाम में बेचते थे। सरकार की ओर से सामने भी कुछ प्रावधान नहीं था। इसलिए हमने डोंगरगाव में छोटे जानवरों के चारा और पानी के लिए मवेशी शिविर की वकालत की। हमें मीडिया से भी मदद मिली। एस.एम. जोशी समाजवादी प्रबोधिनी और कासा और अॅक्शन एड जैसी संस्था से हमने मार्च 2019 में शुरुआत की थी और 31 में 2019 में जि. आर. निकल के आया कि महाराष्ट्र के जो ८ ( सोलापुर, सातारा, सांगली, उस्मानाबाद, बीड, जळगाव, पुणे और अहमदनगर) सूखा प्रभावित जिले हैं, उन जिलों में जब भी अकाल आएगा, तब वहां पर मवेशी शिविर लगाया जाएगा। ये एक हमारी उपलब्धि है।

पलायन को हतोत्साहित करने के लिए, हम स्थानीय स्तर पर रोज़गार कैसे बढ़ायें, इससे सम्बंधित सामूहिक बकरी पालन को लेकर 120 दलित महिलाओं की नेतृत्व, कौशल, ज्ञान, और दृष्टीकोन को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।

और प्रायोगिक तत्व पर प्रयोग करके वतनी जमीन को उपजाऊ और अपना विकास कैसे कर सकते है, हम इसे विचार दे रहे हैं।

1990s में, अंग्रेजों ने महार (एससी) और रामोशी (डीएनटी) समुदाय को भूमि दी थी  जिसे वतन भूमि कहते हैं। जो लोग सफाई, चौकीदारी का काम करते थे, उनको यह भूमि काम के बदले में दी गयी थी। वतनी ज़मीन गाँव के नाम थी।

यानी कि, जमीन के दस्तावेज परसमस्त गाँव कामगार महारऔरसमस्त गाँव कामगार रामोशीनाम था, की लोगों का। डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर ने मांग उठाई कि यह जमीन व्यक्तिगत नाम पर होनी चहिए। उसके बाद 1958 में, वतन एबोलिश एक्ट आया जिसके मध्यम से जमीन लोगों के नाम पर होनी शुरू हुई।

डॉ. अम्बेडकर शेती विकास वा संशोधन संस्था (ASVSS) के माध्यम से इस कानून की जानकारी देने के बाद लोगों ने अपने नाम पर करना शुरू किया। अभी भी 5,28,000 महार वतन जमीन में से, 1,00,000 जमीन सरकार के पास है। वो जमीन लोगों को वापस दिलवाने के लिये, लोगो के साथ संघर्ष करते आये है। जो जमीन लोगों के नाम पर की गयी, उसमे जाति के उपनाम रखे गये थे। ASVSS के मध्यम से, वकालत करने के बाद, जाति के उपनाम हटाए गये और उनके अपने उपनाम रिकॉर्ड में आये। उसके बाद उस जमीन-धारक को विशेष घटक योजना का लाभ मिलना भी शुरू हुआ।

श्रम और लिंग संवेदीकरण

मैंने काई सामाजिक मुद्दों का अध्ययन किया है। एक अध्ययन हमने महिलाओं के अवैतनिक श्रम (अनपेड वर्क ऑफ़ वीमेन) पर किया था। हम लोगों ने पाया कि महिलायें घर और बहार अवैतनिक श्रमिक करती हैं। वो जब किसी ज़मीन पर खेती भी करती है तो उसे बराबरी का मुआवज़ा और किसान का दर्ज़ा नहीं मिलता।

घर के हर काम का दबाव सिर्फ महिलाओं के ऊपर आता है। महिलायें 16 घंटे मल्टीटास्किंग करती हैं। हम लोगों ने समाधान निकला कि काम को विभाजित करना चाहिए और सब के काम को, खास कर महिलाओं के काम को, पहचानना चाहिए।

महिलायें तीन स्तर पर काम करती हैं: देखभाल करना, पानी लाना, और खाना पकाना (ऊर्जा)। हम लोगों ने 3 घंटे की रणनीति निकाली कि महिलाओं का काम पहचानो और विभाजित करो।

घर का काम सारे लोगों का काम होना चाहिए। इसीलिये ‘घर का काम, सभी का काम’ यह अभियान हम गाँव-गाँव में चला रहे हैं और हर एक कायक्रम में इसका प्रचार और प्रसार करे रहे हैं।

हमारे प्रोजेक्ट के कारण, 1 मई 2017 को, दूरदर्शन चेनल पर, कामगार दिन के अवसर पर महिलाओं के अवैतनिक श्रम की, उनके दृष्टीकोन, और बराबरी के संवैधानिक मूल्यों की बात सफलता से की गयी।

रोटी मांगने गए, हुई हत्या

अर्ध घुमंतु विमुक्त जनजाति के लोग झोली ले के, धुले गांव, मंगलवेढा से राईनपाड़ा गांव में गए थे भीख या दान मांगने और कामकाज ढूंढ़ने के लिए।

ऐसा बोला जाता है कि ये लोग बच्चे चुराते हैं। इस स्टीरियोटाइप और मिसअंडरस्टैंडिंग की वजह से, इन लोगों को राईनपाड़ा ग्राम पंचायत के कार्यालय में ले गए और उनको डंडे से इतना मारा कि पाँचों लोगों की वहीँ मृत्यु हो गयी।

हम लोगों ने जब पेपर में पढ़ा तो हमने कार्यवाई की, क्यूंकि वो लोग मंगलवेढा, शोलापुर जिले के ही थे।

Courtesy: Prabha Yadav

हमने मृत लोगों के परिवार को बोला की शवों को मत लीजिये जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होतीं। हमने हर प्रभावित परिवार के लिए मुआवज़े में 5 लाख की जगह 10 लाख मांगे। दूसरा, हमने मांग की, कि उन लोगों को घर देना चाहिए। अगर उनके पास घर होता, तो वह इधर-उधर भटकते नहीं। तो उनको घर भी मिला घरकुल योजना के तहत।

हम उन लोगों को काम भी दिलाना चाहते थे लेकिन इसमें सफल नहीं हो पाए क्यूंकि मृत परिवार के लोग पढ़ेलिखे नहीं थे। उन में से ज्यादातर लोग अंधश्रद्धालु हैं और भगवान को बहुत मानते हैं। अगर वह पढ़ेलिखे होते तो उनके परिवार के सदस्यों को अब तक काम मिल जाता।

हमें अब ये काम करना है की इनको अंध-श्रद्धा से बाहर लाना है, पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करना है, और इनके लिए कोई स्थानीय काम ढूंढ़ना है क्यूंकि सूखा इलाका है और कोई काम आसानी से नहीं मिलता।

ऊपर से ये लोग भूमिहीन हैं और सरकार उन्हें ज़मीन नहीं दे रही है। हमने 2018 में सरकार को सलाह भी दी कि जो गाये चराने का इलाका और गावठाण जमीन  है, वो सुखी हुई है। तो इस ज़मीन का प्रस्ताव स्वीकार कर के, इन भूमिहीन लोगों को देना जरुरी है। फिर एक उपलब्धी हुई की, 16 फ़रवरी 2018 में ‘सर्वांसाठी घरे योजना’ आ गई और हमारी बात मान ली गयी लेकिन इसमें ये दिक्कत आ रही है कि जो वन अधिकारी हैं, वो इस ज़मीन को संरक्षित करना चाहते हैं और जिन लोगों के पास ज़मीन है, वो खेती करने के लिए ऋृण लेने में सक्षम नहीं हैं। सामूहिक स्वामित्व की वजह से सरकार की योजनाओं का भी इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।

देवदासी परंपरा

देवदासी महिलाओं को भगवान को अर्पण किया जाता है जो की अंधविश्वास का हिस्सा है और इस काम में दलित महिलाएं ज्यादा हैं।

हमने शोलापुर और कोहलपुर में शोध किया और पाया कि जब देवदासी महिलाओं को पढ़ने का मौका मिलता है, तो वे देवदासी का काम छोड़ देती हैं।

माना जाता है की देवदासी महिला की भगवान से शादी हुई है। इस शादी का जुलुस भी निकाला जाता है। लेकिन इन महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा भी होती है। गाँव के जो पाटिल, देशमुख, जमींदार लोग होते हैं, वे इन महिलाओं को संपत्ति की तरह समझते हैं।

कहीं भी शादी होती है तो देवदासी महिलाओं को एक रात के लिए नाचने-गाने के लिए बुलाया जाता है जिस के उन्हें पैसे दिए जाते हैं और थोड़ा तेल और आटा दिया जाता है।

हफ्ते के एक दिन, जैसे मंगलवार को, देवदासी महिलाएँ गले में एक विशेष हार पहनती हैं जो सफेद और लाल रंग का होता है और और आधे शंख से बनता है जो की समुद्र में मिलता है। इस हार को देखकर लोग समझ जाते हैं कि ये महिला देवदासी है।

Courtesy: Prabha Yadav

जिला सोलापुर में दो बहनें हैं जिनकी माँ देवदासी है। दोनों बहनों ने नौवीं कक्षा तक पढ़ाई की थी। उनकी माँ नहीं चाहती थी कि उसकी लड़कियां देवदासी बनें। ऐसा माना जाता है कि अगर माँ देवदासी है तो उसकी लड़कियां भी देवदासी ही बनेंगी। इसे परंपरा का हिस्सा माना जाता है।

दोनों बहनों में से एक बहन के नाम रामोशी वतन भूमि है और उसका नेतृत्व कौशल आगे उभर कर आ रहा है।

मैंने उसको हस्तक्षेप और अलगअलग कार्यक्रमों में शामिल किया तो दोनों बहनों ने सोचा की हम आगे की पढ़ाई पूरी करेंगे। उन्होनें ASVSS संस्था के माध्यम से 10वीं कक्षा पास करी। फिर उन्होंने 6 महीने काबेड साइड असिस्टनटपाठ्यक्रम कोर्स पूरा किया। वो दोनों अभी अस्पताल में ICU में काम करती हैं।

 दोनों बहनों ने देवदासी परंपरा को बिलकुल जारी नहीं किया और आज वे दोनों शादीशुदा हैं और उनमें से एक बहन का बेटा भी विज्ञान की पढ़ाई कर रहा है और अपनी माँ की तरह कूच बनना चाहता है।